मित्रों, कई बार ऐसा लगता है कि राजनीति अब समाज सेवा का माध्यम ना रहकर सिर्फ़ एक व्यापार होकर रह गई है।
आज कुछ लोगों ने राजनीति का व्यवसायीकरण कर दिया है। पार्टी का चुनाव लड़ने के लिए यदि कोई टिकट चाहता है या कोई पद/औहदा तो उस व्यक्ति से पार्टी फ़ंड में लाखों/करोड़ों रुपया जमा करवाने के लिए कहते हैं पार्टीयों के कर्ताधरता।
ऐसा नहीं है कि सब कुछ पैसे से ही हो रहा है, अगर आपके अंदर चम्चागिरी करने की कला और किसी बड़े नेता की कोई कमज़ोर नस आपके हाथ है, तो आप बार-बार उस बड़े नेता की उस नस को दबाकर उसे ए.टी.एम. कार्ड की तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं ।
मित्रों, आज कौन है जो राजनीति में सेवा करने के लिए आ रहा है ? सब कहते हैं कि हमने इतना समय और पैसा बर्बाद किया तो लाभ भी हम ही क्यों ना उठाएं।
उनकी बात भी सही है। आज की राजनीति इन्वेस्टमेंट/ निवेश का खेल जो बन गयी है। इसीलिए तो मैं अक्सर कहता हूँ कि कुछ भ्रष्ट और बेइमान लोगों ने समाज सेवा के पवित्र माध्यम को वेश्या बना दिया है, जो चंद चांदी के सिक्कों की खातिर अपने ज़मीर के साथ-साथ अपने तन का सौदा करती है।
"मित्रों ऐसा नहीं है कि समाज में कुछ कर-गुज़रने वाले लोगों की या प्रतिभाओं की कोई कमी है, पर वे इस गंदे दल-दल में जाने से हिचकते हैं या उन्हें कोई गॉड फ़ादर नहीं मिलता"।
गॉड फ़ादर मिले भी तो कहाँ से वो खुद इस मंडी का सबसे बड़ा दलाल है। और हाँ! मित्रों, ऐसा नहीं है कि इस बीमारी से कोई एक दल ही ग्रसित है ये तो इबोला है जिसकी चपेट में सभी हैं।
अब सरकार जिस तरह से इबोला से निपटने की बात कर रही है उम्मीद कर सकते हैं कि जो इबोला आज के इस राजनीतिक/सामाजिक वातावरण को प्रभावित कर उसका स्वास्थ्य खराब कर रहा है कोई कृष्ण बन उस और भी ध्यान देगा।