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क्या यही थी, मदनलाल खुराना और शीला दीक्षित की दिल्ली ?

आज यदि मदनलाल खुराना जी या शीला दीक्षित जी, जीवित होते तो हमारी दिल्ली को यह दिन ना देखने पड़ते।

खुराना जी तो दिल्ली को अपना मन्दिर और खुद को उसका पुजारी मानते थे और काम भी करते थे। दिल्ली के विकास और जरूरतों के लिए यह दोनों ही नेता तब भी केन्द्र से भिड़ जाया करते थे। चाहे सरकार किसी भी दल की क्यूं ना रही हो। 

आज दिल्ली में जो भी विकास आपको दिखाई देता है। चाहे वो मेट्रो रेल हो, पुल हों, सड़कें हों और उनके नीचे अंडरपास या फिर CNG से चलने वाली पब्लिक ट्रॉंसपोर्ट या अन्य निजी वाहन। सब इन दोनों दिग्गज नेताओं की देन हैं।

वर्तमान की दिल्ली की अत्यधिक बहुमत वाली केजरीवाल और केन्द्र की अत्यधिक बहुमत वाली मोदी सरकार की हठधर्मिता, और बदले सहित आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ने दिल्ली का बेड़ा-गर्क करके रख दिया है। आज कई बार ऐसा लगता है कि हम लोग देश की राजधानी दिल्ली में ना रहकर बिहार के किसी पिछड़े हुए जिले के निवासी हों।

आज कोविड_19 कोरोना महामारी की दूसरी खतरनाक लहर के बीच में इन दोनों ही सरकारों के आपसी झगड़े और महामारी में भी नाम कमाने और अपनी छवि बनाने की होड़ ने दिल्ली को ऑक्सीजन के अभाव में श्मशान में बदल दिया।

इन दोनों ही सरकारों के इस कृत्य के लिए देश कभी भी इन्हें माफ नहीं करेगा। 

मैं यह भी जानता हूं कि मेरा देश नेताओं के दिए जख्मों और उनकी नाकामियों को बहुत जल्दी भूल जाता है और फिर चुनाव के समय अलग-अलग रंग और लिबास में रंगे इन इंसानियत के दुश्मनों की जय-जयकार करने लग जाता है।

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