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क्या हम सच में आजाद हैं ?- अभिमन्यु गुलाटी

मित्रों, हर साल की तरह इसबार भी 15 अगस्त यानी "स्वतंत्रता दिवस" आ रहा है। 15 अगस्त यानीकि हमारी आजादी का दिन। इस दिन हमने अंग्रेज हकूमत की गुलामी से मुक्ति पा ली थी। 15 अगस्त सन् 1947 को अंग्रेजों से आजादी पाने के बाद से हर साल इस दिन को हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस के रूप में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। स्कूल, कॉलेजों, सरकारी कार्यालयों तथा अन्य सभी जगहों पर आजादी का जोरदार जश्न मनाया जाता है। इस बार भी हम सब अपनी आजादी का 72वां जश्न मनाने के लिए तैयार हैं।

 
लेकिन उसके पहले एक सवाल बार-बार मेरे मन में उठ रहा है कि क्या हम सच में आजाद हैं? क्या हम स्वतंत्रता का सही अर्थ समझ पाए हैं? ये तमाम प्रश्न न केवल हमारी आजादी पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं, बल्कि समाज के बौद्धिक वर्ग व आम जनता को आजादी के सही मायने खोजने के लिए भी प्रेरित करते हैं।
 
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में ही सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
 
दुष्यंत की ये पंक्तियां आजादी के 72,वर्षों बाद आज भी उतनी ही  प्रासंगिक हैं। आजादी के इतने वर्षों बाद भी देश में कई वर्ग ऐसे हैं जिन्हें आज भी अपनी आजादी का इंतजार है। देश में बढ़ता भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण तथा गरीबी के कारण आजादी शब्द के मायने खत्म होते जा रहे हैं। जहां की जनता अपने लिए भर पेट भोजन जुटाने के काबिल भी नहीं वहां आजादी की बातें भी बंधन में जकड़ती महसूस होती हैं। इन अभावों के साथ कैसे कहें कि हम आजाद हैं। आज हम कहीं नक्सलवाद तो कहीं आतंकवाद से लड़ रहे हैं तो कहीं जातिवाद से तो कहीं भ्रष्टाचार से, और तो और हमारे देश की अधिकतर महिलाएं तो सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही हैं।

आज भी उन्हें इंतजार है उस आजादी का, जो एक औरत को उसकी सही पहचान दिलाने में मदद करे, आज देश की आधी से ज़्यादा आबादी को इंतजार है उस आजादी का, जो उसकी प्रतिभा को पनपने का पूर्ण अवसर दे, देश की बहन-बेटियों को इंतजार है उस आजादी का, जहां वे बेखौफ रहकर अपने सम्मान की रक्षा कर पाएं। हमारे आजाद भारत में हमारे ही परिवार का महत्त्वपूर्ण हिस्सा आज भी लड़ रही हैं उस आजादी के लिए जो स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी उनसे दूर है। हमारे यहां उन्हें समानता का अधिकार देना तो दूर एक आम नागरिक होने तक का सम्मान प्राप्त नहीं है। इसलिए बार-बार उनके अस्तित्व व आत्मसम्मान को कुचला जाता है। दामिनी/निर्भया और अभी हाल ही में घटी बिहार और उत्तर प्रदेश की घटनाएं ही महिलाओं की आजादी की पोल खोलने के लिए काफी हैं।

अगर हम बात करें देश के अन्य वर्गों की तो हम सिर्फ कहने के लिए ही विकासशील हैं, देश के मौजूदा हालात देखकर नहीं लगता कि व्यवस्था या अर्थव्यवस्था में कोई परिवर्तन आया है। हां, हालात और बदतर जरूर हो गए हैं। कहने को तो हमारा देश विकासशील है और अपनी उन्नति व सफलता के नए अध्याय लिख उसका ढिंढोरा पीटते जा रहे हैं लेकिन ये कैसी उन्नति है जहां देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा हमारा युवा नौजवान/युवाभारत दो जून की रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहा है, अन्य मूलभूत सुविधाओं की प्राप्ति तो उसके लिए बहुत दूर की बात है। एक ओर देश का नौजवान पढ़ा-लिखा होकर भी नौकरी को तरस रहा है, तो दूसरी ओर कुछ बच्चे प्राथमिक शिक्षा से भी महरूम हैं। ऐसा नहीं कि नौकरी न पाने वाले उन युवाओं में प्रतिभाओं की कमी है या फिर शिक्षा से दूर ये बच्चे मंदबुद्धि हैं। कमी इनमें नहीं हमारी व्यवस्था में है। जहां सबको समानता से अपनी आजाद जिंदगी जीने का अधिकार तो है, परन्तु उन अधिकारों को प्राप्त करने की सुविधाएं नहीं। "आज जैसे-जैसे देश में संपन्न लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है वैसे-वैसे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों व उनकी लाचारी में भी इजाफा हो रहा है"।

आज भी देश का पिछड़ा वर्ग जातिवाद का दंश झेल रहा है। सरकार व व्यवस्था से चोट खाए लोग नक्सली बन रहे हैं। आए दिन किसी न किसी मुद्दे पर सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं देश के नेता सब कुछ जानकर भी अनजान बनकर चैन की नींद सो रहे हैं। तो ऐसे में क्या ये आज की जरूरत नहीं है कि दुष्यंत की पंक्तियों से सीख लेते हुए हम सबको मिलकर व्यवस्था को बदलने की एक प्रभावी पहल करनी चाहिए। और इस सुधार की पहल पहले किसी एक से ही होगी। पहले किसी एक को ही अपनी जिम्मेदारी व कर्तव्य को समझना होगा आज कोई चौकीदार,नामदार,कामदार,ठेकेदार   का मुहावरा सुनाता है तो कोई भागीदार और कर्ज़दार की कहानी सुना चलता बनता है परन्तु जिम्मेदारी की कोई भी बात नहीं करता। यदि कोई चौकीदारी और भागीदारी की बात छोड़ आज जिम्मेदारी की बात करे तभी बाकी सभी लोग इस मुहिम में शामिल हो पाएंगे और तभी हम समझ पाएंगे आजादी के सही मायने। आप सभी को आने वाले 72वें स्वतन्त्रता दिवस 15,अगस्त की बहुत-बहुत अग्रिम शुभकामनाएँ! जय हिन्द-वन्देमातरम्! सादर, आपका- अभिमन्यु गुलाटी

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